मंगलवार, 6 अक्तूबर 2009

कोई मेरे दिल से पूछे , तिरे तीर-ए-नीमकश को

           अंसार अहमद मेरे मित्र हैं , शायरी का शौक इस तरह कि ढेरों शेर ज़बानी याद । कहने का शौक तो नहीं है लेकिन मोबाइल पर एस एम एस कर भेजते रहते हैं । बाज़दफा चर्चा भी होता है मशहूर शाइरों के बारे मे ,उनकी शायरी के बारे में । अंसार अहमद बैंक में अफसर हैं सो अपने क्षेत्र की जानकारी तो है ही । यह मेरी सलाह थी आइये ब्लॉग जगत में प्रवेश कीजिये और अपने ज्ञान को दुनिया से शेयर कीजिये . सो कूद गये हैं । अब सम्भालना आपके ज़िम्मे है । आगे जैसे जैसे वे इस दुनिया से परिचित होंगे आप भी उनकी शख्सियत से परिचित होते जायेंगे । फिलहाल तो उन्होने मुझ पर यह ज़िम्मेदारी सौंपी है कि मै यहाँ कुछ लिखूँ और इस ब्लॉग को आगे बढ़ाऊँ सो आज की यह मेरी पहली पोस्ट ।
           अंसार अहमद ने शुरुआत ग़ालिब से की है तो मैं भी ग़ालिब का एक शेर लेकर आया हूँ । गालिब साहब के बारे में काफी कुछ लिखा जा चुका है लेकिन एक बात मैं कहना चाहता हूँ गालिब की लोकप्रियता को लेकर । शुरुआती दौर में जब ग़ालिब साहब ने शेर कहे तो वे अरबी,फारसी से बोझिल थे वे शेर उनके पॉपुलर नहीं हुए । लोकप्रिय वे शेर हुए जो सरल थे । यह चर्चा का विषय तो है लेकिन इस पर बाद में बात करेंगे । आज उनका एक शेर जैसा मैने समझा है वह आपके सामने प्रस्तुत कर रहा हूँ इस के और क्या क्या अर्थ निकलते हैं वह तो आप लोग बतायेंगे । शेर उनकी प्रसिद्ध गज़ल " ये न थी हमारी किस्मत ,कि विसाल-ए-यार होता " से है ।

                            कोई मेरे दिल से पूछे , तिरे तीर-ए-नीमकश को
                            यह खलिश कहाँ से होती ,जो जिगर के पार होता ।

           इस शेर में तीर-ए-नीमकश का मतलब है आधा खिंचा हुआ तीर या वह तीर जिसे चलाने में धनुष आधा खींचा गया हो या कमज़ोर तीर । और खलिश से तात्पर्य है ,चुभन । यह आपने महसूस किया होगा कि कोई काँटा या नुकीली चीज़ जब तक अटकी रहती है तब तक तेज़ दर्द होता है लेकिन उसके निकलते ही दर्द कम हो जाता है । गालिब साहब यहाँ क्या कहना चाहते हैं ? अगर तीर जिगर के पार हो जाता तो क्या वेदना कम हो जाती ? या कि और बढ़ जाती ? लेकिन यहाँ कमज़ोर तीर चुभ कर वापस निकलना नहीं है दर्द के कम हो जाने का बायस तीर का आर-पार हो जाना है । मैं तो इतना ही समझ पाया हूँ । आप दानिशमन्द लोग बतायें ग़ालिब क्या कहना चाहते थे ? --- अंसार अहमद के साथ शरद कोकास

6 टिप्‍पणियां:

  1. बढ़िया ग़ज़ल..ग़ालिब साहब भी गागर में सागर भरने वाले लोगों में से थे..सुंदर प्रसंग..बधाई..

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  2. अमा, गालिब की जान जाती है और वो कहते हैं मिज़ाज अच्छा है...

    जय हिंद...

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  3. चलिए, यह शुभ कार्य आप कर ही गुजरे..अंसार अहमद को पढ़ने का इन्तजार रहेगा.

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  4. कोई मेरे दिल से पूछे , तिरे तीर-ए-नीमकश को
    यह खलिश कहाँ से होती ,जो जिगर के पार होता ।

    कहा जाता है की जब हम पोएट्री पढते हैं तो खुद को पढते हैं. हर एक अपने मायने बना लेता/सकता है.


    यह शेर इतना जबरदस्त है कि इस पर एक किताब लिखी जा सकती है!

    तीर-ए-नीमकश - भावार्थ ये है कि तीर चलाने वाली की इंटेशन तीर चलाना या घायल करना थी ही नही.. वो तो चल गया सो आधा ही खींच कर चला, यदि इंटेशन से चलाया जाता तो क्या हो जाता.


    आगे

    जो जिगर के पार होता - यहीं कमाल है गालिब का, कहते हैं कि यदि इंटेशन से चलाया जाता, तो जिगर के पार होता, और ऐसे वे में वे बचते नहीं! जो बचते नहीं तो उस खलिश को कैसे महसूस करते जो हो रही है!

    खलिश का मतलब यहां प्यार के दर्द से है. भावार्थ ये है दिल तीर चलाने वाले को दुआएं दे रहा है की तीर चलाया. और उस पर ये भी सोच कर शुक्र मना रहे है कि इंटेशन से चलाया जाता तो क्या होता चुकता!

    कोई मेरे दिल से पूछे , तिरे तीर-ए-नीमकश को
    यह खलिश कहाँ से होती ,जो जिगर के पार होता ।

    वाह!

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  5. और उपर ये भी उल्लेखनीय है कि चलाने वाले का तीर दिल के पार हो चुका है .. लेकिन जिगर के पार नही हुआ! .. चूंकि वो आधा ही खिंच कर चलाया गया था.

    गालिब ने जो २ लाईन मे कहा, आम आदमी के हजार पन्नो मे बयां नही हो सकता. बस महसूस हो सकता है.

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  6. बढ़िया है। लेकिन एक ठो बात बोले, इतना हमको नहीं बुझाता है। बहुते गहरा है।

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